कुं. चन्द्र सिंह "बादळी"
जीवन परिचय
*जन्म -27 अगस्त 1912
*देहावसान -14 सितम्बर 1992
*देहावसान -14 सितम्बर 1992
Monday, February 8, 2010
चन्द्र सिंह बिरकाली
चन्द्र सिंह बिरकाली 4 कविताएं
सीप-१
विदा लेते हुए
रात ने उषा से कहा-
कल यहीं, अच्छा ।
उड़ती हुई उषा ने
सूरज से सुना-
कल यहीं, अच्छा !
आंखों से ओझल होते
सूरज से
अंत में सांझ ने वचन लिया
कल यहीं, अच्छा !
सीप-२
डालों से लगे हरे-हरे पत्ते
एक दूसरे के सामने देख
चंचल हुए
एक दूसरे से
मिलने के लिए ललचाए
अपनी-अपनी जगह स्थिर
सूखे पत्ते
दूर-दूर से आकर
एक दूसरे से गले मिल रहे हैं,
साथी ! आओ झरें......
सीप-३
अंधेरे से उजाले में आते ही
बच्चा रोया
इससे जीवन का अर्थ लगा
लोग हंसे,
धीरे-धीरे देखा देखी
वही बालक उजाले का आदी हो गया
एक दिन अचानक
अंधेरा आते देख
वही बालक
उजाले के लिए रोने लगा ।
सीप-४
तपे हुए तकुए सी तेज
सूरज की किरणों की लौ
अपने गले से उतार
कलेजे में छाले उपाड़
दिन भर धूनी रमा
रात को अमृत बरसाया
उस चांद को
लोगों ने चोर बताया ।
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are vah! sangramsinghji, aap to gzb kaam kar diyo. mhare kne aapra m.n. koni. jruri baat karani hai. 9602412124 par baat krjyo sa!
ReplyDelete-satyanarayan soni, parlika